जुबां पर शायरी juban par shayari - Zindgi ek kavita

जुबां पर शायरी juban par shayari

ज़ुबां
जिंदगी एक कविता

जिंदगी एक कविता

जुबां चमड़े की अकसर फिसलती बहुत है
वक्त पड़ने पे फितरत बदलती बहुत है।
सुना है शहर में उनका रुतबा बहुत है,
उनके इलाके में मुंह से उनकी चलती बहुत है।
@साहित्य गौरव

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