औरत पर कविता, aurat par kavita - Zindgi ek kavita

औरत पर कविता, aurat par kavita

Aurat par kavita

जिन्दगी एक कविता
जिन्दगी एक कविता

बड़बड़ाती है अकसर,
रोज की आदत से मजबूर है।
कोई कैसे समझाएं उन्हें,
जो अपनी जहालत से मजबूर है।
परिवार में अमन खोजती हुई,
कुछ है ऐसी औरतें,
खुद बिगाड़ती है पहले इसको,
और घर की हालत से मजबूर है।
@साहित्य गौरव

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