चिराग हूं कविता, chirag hun - Zindgi ek kavita

चिराग हूं कविता, chirag hun

चिराग हूं/chirag hun
habbit aadat
Zindgi ek kavita

zindgi ek kavita

वक्त नही हूं चलने की आदत नही है
मिट्टी की तरह ढलने की आदत नही है।
बेशक तुम लगा लो दाम कितना भी मेरा,
मतलब के लिए बदलने की आदत नही है।
गिरगिट सी फितरत मुझमें होगी कहां,
मोम की तरह पिघलने की आदत नही है।
 मैं जलता रहा हूं खुद ही चाराग जैसे,
मेरी दूसरों से जलने की आदत नही है।
@साहित्य गौरव 

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