ईमानदारी पर कविता, imaandari par kavita - Zindgi ek kavita

ईमानदारी पर कविता, imaandari par kavita

जिंदगी एक कविता
जिंदगी एक कविता

आज मैंने भी जरा मक्कारों से,
मक्कारी ही सीख ली।
धूल खा रही किताब ए तालीम तो
बेकारी ही सीख ली।
मुझे मेरे हालातों ने कुछ,
इतना बदल डाला,
कि ईमान की बस्ती में इंसानों से,
गद्दारी ही सीख ली।
@साहित्य गौरव

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