तबाही कविता,tabahi kavita
भर गए बदन के,
दिल के घाव बाकी रह गए,
जिंदगी में ऐसे कितने ही,
पड़ाव बाकी रह गए।
भले ही भुला के चल दिए,
यादें पुराने शहर की,
जब पीछे मुड़कर देखा,
तो लगाव बाकी रह गए।
लग रहे है बड़े जोरों से,
सर्द हवा के थपेड़े,
बुझे कड़कड़ती ठंड में,
आलव बाकी रह गए।
चंद रोज पहले यहां,
कुछ आए तूफान ऐसे,
तबाह शहरों को कर डाला,
बस गांव बाकी रह गए।
गुजरते वक्त के साथ ही,
बदल गया सब कुछ यहां,
जो कुछ न बदल पाया,
वो बदलाव बाकी रह गए
@साहित्य गौरव
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