तकदीर पर कविता,luck,takdeer par kavita - Zindgi ek kavita

तकदीर पर कविता,luck,takdeer par kavita

तकदीर पर कविता,luck,takdeer par kavita

जिंदगी एक कविता

जिंदगी एक कविता

कहता हूं मैं दिन तो वो रात बन जाती है,
चाहूं अगर जो धूप वो बरसात बन जाती है।
मेरा मेरी तकदीर से बड़ा ही तल्ख रिश्ता है
यही कश्मोकश से फिर मुश्किलात बन जाती है।

मैं जूझ रहा हूं आजकल,जरा अपने आप से,
संभाले नही संभलते वो हालात बन जाती है।
....यही कश्मोकश से फिर मुश्किलात बन जाती है।

कोशिशों से अपनी गर मैं अंजाम दे भी दूं,
मुझे दोराहें पे लाकर ये शुरुआत बन जाती है।
....यही कश्मोकश से फिर मुश्किलात बन जाती है।

क्यों नहीं सुलझती ये जिंदगी की पहेलियां,
जवाब नहीं मिलता सवालात बन जाती है।
...यही कश्मोकश से फिर मुश्किलात बन जाती है।

कभी होगी साथ मेरे तुम उम्मीद तो नही है,
क्या बस साथ रहने से बिगड़ी बात बन जाती है।
....यही कश्मोकश से फिर मुश्किलात बन जाती है।

समझ तुझे भी होगी,इतनी नासमझ तो नही,
क्यूं बातों में किसी की आकार वाहियात बन जाती है।
...यही कश्मोकश से फिर मुश्किलात बन जाती है।

निभा रहे जो बेहद खुशी से अपना रिश्ता,
साझेदारियों से ही जिंदगी कायनात बन जाती है।
...यही कश्मोकश से फिर मुश्किलात बन जाती है।
@साहित्य गौरव

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