बेताब कुआँ गजल , betabi par gazal - Zindgi ek kavita

बेताब कुआँ गजल , betabi par gazal


बेताब कुआँ , Desperate Well

ज़िंदगी एक कविता

ज़िंदगी एक कविता



वो इश्क की गली का बेताब सा कुआं।
बेसब्र,बेतहाशा इक सिताब सा कुआं।
..वो इश्क की गली का बेताब सा कुआं।

भरा अंगूरी अर्क से लबालब तह तक,
मदहोश किसी शायर की शराब सा कुआं।
..वो इश्क की गली का बेताब सा कुआं।

बलखाती बहारों में तितलियों के साथ,
छलकाता अपने हुस्न का शबाब सा कुआं।
...वो इश्क की गली का बेताब सा कुआं।

चांदनी रातों में चमकता सितारों सा
बीच में उजला हुआ महताब सा कुआं।
...वो इश्क की गली का बेताब सा कुआं।

उसके आने से,मैदानों में अब जान आ गई
रिमझिम जब बरस गया शादाब सा कुआं।
...वो इश्क की गली का बेताब सा कुआं।

खूबसूरत उसके जिस्म के दीदार हो कैसे,
आड़ में हो किसी की वो हिजाब सा कुआं।
...वो इश्क की गली का बेताब सा कुआं।

छुप छुप के मैने देखा है चिलमन की औंट से,
सफेद मखमली चमकदार बेदाग सा कुआं।
....मैं इश्क की गली का बेताब सा कुआं

@साहित्य गौरव  

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