Ek Aaina, एक आइना - Zindgi ek kavita

Ek Aaina, एक आइना

एक आइना

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जिंदगी एक कविता

jindgi ek kavita


हर आइना अपने आप से वाकिफ नहीं होता,
खुद से खुद को देख ले ये मुनासिब नहीं होता।

जो औरों को बात बात पर दिखाता है आइना,
वो आईने के सामने कभी मुखातिब नहीं होता।

जो बैठा इसके सामने वो कितना संवर गया,
कुछ आईनों का रुख वरना इस जानिब नही होता।

वजूद अपना बेच दे जो सस्ती शौहरत के लिए, 
यहां दाम ऐसे आईनों का फिर वाजिब नहीं होता।

मेरी कलम भी गौरव कुछ तो वजूद रखती है,
अच्छा लिखने वाला एक सिर्फ गालिब नही होता।

@साहित्य गौरव

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