कविता बाजार - Zindgi ek kavita

कविता बाजार

कविता बाजार में kavita ke bazar mein 

जिन्दगी एक कविता 

zindgi ek kavita


जाने कितने है कवि यहां,
जाने कितनी है कविताएं,
कुछ हिंदी की कुछ उर्दू की,
सब भिन्न भिन्न है रचनाएं।

लगी साहित्य की भीड़ यहां, यहां लगे है रस कतार में,
लो मेरी भी कविता पेश है, इस कविता के बाजार में,

माना कलम है मेरी नई नई,
अनुभव नहीं है लिखने का,
तारीफ झूठी सी करने का,
बस दो कौड़ी में बिकने का।

चापलूसी किसी की कैसे भला, मैं क्यों करूं बेकार में,
लो मेरी भी कविता पेश है, इस कविता के बाजार में,

इसे सजा धजा कर लाया हुं,
इसके अलग थलग अंदाज है।
वैसे कविता तो कोमल है,
बस शब्दों से तुनकमिजाज है।

कितनी आकर तो चली गई, और कितनी है इंतजार में,
लो मेरी भी कविता पेश है, इस कविता के बाजार में
@साहित्य गौरव

Zindgi Ek Kavita 

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