khawb par kavita , ख्वाब पर कविता
khawb par kavita
ख्वाब पर कविता
जिंदगी एक कविता
कभी तो इश्क आप भी यूं बेहिसाब कीजिए।
जिस्म से जरा सा दूर अपना हिजाब कीजिए।
फरमा रहा हूं शौक से बा-अदब मैं दिल्लगी,
चेहरा दिखा के हूर का उसे बेनकाब कीजिए।
....कभी तो इश्क आप भी यूं बेहिसाब कीजिए।
khawb par kavita
कब तलक यूंही देखता मैं तुम्हे रहूं ख्यालों में,
दीदार दे के चांद का मुझे आफताब कीजिए।
अब हो रहा मुश्किल बड़ा यूं दिल में छुपाएं रखना,
लेके मुझे आगोश में सच मेरा ख्वाब कीजिए।
....कभी तो इश्क आप भी यूं बेहिसाब कीजिए।
khawb par kavita
माना मर्ज ए इश्क है मशहूर हर आशिक का,
आकर कभी तो गौर से दिलका इलाज कीजिए।
हाथ से निकल न जाए सब्र ए वक्त वक्त का,
इश्क का इजहार कर पूरा रिवाज कीजिए।
.....कभी तो इश्क आप भी यूं बेहिसाब कीजिए।
कोई टिप्पणी नहीं