kavita kahi suni baatein
कविता कही सुनी बातें
जिंदगी एक कविता
kavita kahi suni baatein
मैं किसकी सुनाऊं साहब,
तुम किसकी सुनोगे,
या औरों के जैसे,इसकी उसकी सुनोगे?
पास मेरे कुछ नही अब सुनने सुनाने को
चला गया वो शख्स,
जो तुम जिसकी सुनोगे?
धीरे धीरे सुधर रहें है,सब लोग मेरी जानिब,
न रही बिलकुल भी,
जो मेरे बसकी सूनोगे?
होगी बड़ी दिलचस्पी, तुम्हे जिंदगी में औरों की,
जिसकी सुनता नही ही कोई,
अब तुम उसकी सुनोगे?
@ साहित्य गौरव
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