परिस्थिति पर कविता ,situation par kavita - Zindgi ek kavita

परिस्थिति पर कविता ,situation par kavita

परिस्थिति/situation
Zindgi ek kavita

Zindgi ek kavita


थाम रहा हूं रेत,
जितनी मुट्ठियों में अपनी,
कमबख्त ये उतनी ही 
फिसलती जा रही है।
ठहर जाए वक्त भी,
पल भर के लिए लेकिन,
ये जिंदगी की घड़ी क्यूं 
उछलती जा रही है।
चाहता हूं सुधर जाए,
बिगड़े से हालत मेरे,
परिस्थितियां मुसलसल 
बदलती जा रही है।
भर रहा हुं दरारें जैसे जैसे
रिश्तों की,
ये हद से भी ज्यादा,
और निकलती जा रही है।
@साहित्य गौरव

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