मजदूर कविता, mazdoor kavita - Zindgi ek kavita

मजदूर कविता, mazdoor kavita


जिंदगी एक कविता

जिंदगी एक कविता

बात तो रोटी की ही है साहिब,
वरना तपती धूप में कोई काम करने
को मजबूर न होता।
अगर परिवार की जिम्मेदारियां न होती,
भूख की फिकर ना होती तो आज कोई इंसान
मजदूर न होता।
@साहित्य गौरव 
जिंदगी एक कविता



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