gulab par kavita - Zindgi ek kavita

gulab par kavita

गुलाब पर कविता



जिंदगी एक कविता

मैं गुलाबों की खुशबू महक जाऊंगा,
हूं झरने का पानी छलक जाऊंगा।
आएगा जब भी बहारों का मौसम,
बनकर के दिल में धड़क जाऊंगा।

गुलाब पर कविता

न आना कभी तुम यहां हुस्न वालों,
मैं आशिक आवारा तड़प जाऊंगा।
न देखों मुझे अपनी नजरे चुराकर,
ये निगाहें नशीली मैं बहक जाऊंगा।

गुलाब पर कविता

सर्द होती है अक्सर वादियों में रातें
हूं आतिश की आग सुलग जाऊंगा।
हल्की हरारत के तुम्हे महसूस होगी,
जब जिस्म से तुम्हारे चिपक जाऊंगा।
@साहित्य गौरव 

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